सुवर्ण हंस की हिंदी कहानी - Golden Swan Fantasy Story in hindi - best hindi story with moral in hindi

 

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सुवर्ण हंस की हिंदी कहानी भाग 1- Golden Bird Fantasy Story in hindi - Best Moral Story


यह कहानी स्वर्गलोक से कई दूर नीचे स्थित हंसलोक की हैं। हंसलोक में मानवीय हंस और अन्य प्रकार के हंसों की सृष्टी हैं। हंसलोक का सुवर्णपूर क्षेत्र खासकर सोनेरी रंग के हंसों के लिए बनाया गया हैं। यहाँ के दो हंस पृथ्वी आदी ग्रहों पर भ्रमण करके फिर्से लोक में लौट आते हैं साथ में कई प्रकार के तारों के ऊर्जा पुंज जमा करके हंसलोक में रख देते हैं।

एक हंस ऊर्जा पुंज की लालच में अपने हीं मित्र दूसरे हंस को नीलविवर में कैद कर देता हैं। दूसरा हंस इस बात से क्रोध में आकर पहले हंस को पृथ्वीपर 100 बार जन्म लेने का श्राप देता हैं। इसके कुछ दिन बाद पहला हंस एक गरीब परिवार में पुत्री रूप में जन्म लेता हैं। यह पुत्री जन्म लेने के कई वर्ष बाद लोगों के साथ मजाक करके पैसे से लाचार बना देती हैं।

एक दिन यहीं लडकी पैसे समाप्त हो जाने से खुद लाचार बन जाती हैं। समय गुजरने के दौरान वहीं लडकी एक बुढी महिला बन जाती हैं जिसकी एक बेटी उसी के साथ रहती हैं। बहुत अधिक मेहनत करने के बाद भी बुढी महिला गरीब हीं रह जाती हैं और इसी प्रकार जीवन बिताती हैं।

एक दिन उसी दूसरे हंस को बुढी महिला पर दया आ जाती हैं इस कारण हंस मानव के समान बोलकर बुढी महिला को अपने पंख देता हैं। सुवर्ण हंस के कहने पर महिला और उसकी बेटी सोनेरी पंखों को बेचकर धन प्राप्त करने लगी इस तरह दोनों अमीर बन गई और मन में अधिक लालच आ गया। लालच में माँ बेटी ने हंस के पंख छिनने का तय किया।

अगले दिन हंस हमेशा की तरह महिला के घर सोनेरी पंख देने आता हैं। माँ उस हंस को अपनी बातों में उलझाकर रखती हैं तब हंस अपने दो पंख महिला के हाथ में देता हैं। फिर वह महिला जबरदस्ती हंस के पंख उखाड़ने लगती हैं जिस कारण सोनेरी पंख सफेद हो जाने से छोड देती हैं।

हंस दूर जाकर उसी लालच की ऊर्जा को आभास करता हैं फिर उसे पता चलता हैं यह तो वहीं हंस हैं जिसे मैंने पृथ्वीपर जन्म लेने का श्राप दिया और उसका जन्म एक बुढी महिला के रूप में हुआ। बुढी महिला का सत्य जानने के बाद दूसरा हंस उस क्षेत्र में वापस नहीं आता। पर वहीं महिला अपने घर में भारी संख्या में सोनेरी पंख पाकर खुश हो जाती हैं। 

सुवर्ण हंस की हिंदी कहानी भाग 1 - Moral Fantasy Story in Hindi Long Story - Golden Bird Story


कहानी की शुरुआत अनेक आकाशगंगाओं के उपर स्थित स्वर्गलोक से होती हैं। स्वर्गलोक की श्वेतऊर्जा प्रकाशमान हंसलोक का निर्माण करती हैं। यह दिव्य हंसलोक स्वर्गलोक से कई दूर निचे जाकर स्थित हो जाता हैं। हंसलोक में दिव्य ऊर्जा द्वारा मानवीय हंस और अन्य प्रकार के रंग के हंसों का सृजन किया जाता हैं। हंसलोक में सत्व रज तम गुणों के समान विभाजीत होने से हंसलोक को निर्माण करने वाली पुरुष ऊर्जा हंसराज तीन भाग बनाने का तय करता हैं

जागृत हुआ हंसराज सात्विक हंसलोक को सबसे उपर रखता हैं। राजसिक हंसलोक मध्य में और तामसिक हंसलोक सबसे निचे दक्षिण ध्रुव के पास स्थित किया जाता हैं। तब तीनों हंसलोक को एक गोल आवरण में रखकर मानवीय हंस और अन्य प्रकार के हंसों का निर्माण करते हैं। कार्य पुरा होने के बाद हंसराज पलभर में स्वर्गलोक में पहूँचकर विश्राम करता हैं।

यहीं हंसराज बाद में हंसलोक की सभी गतीविधीयों पर नजर रखता हैं लेकीन उन घटनाओं में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता। सात्विक हंसलोक का सुवर्णपूर क्षेत्र खासकर सुवर्ण हंसों के लिए बनाया जाता हैं। इस क्षेत्र के मानवीय हंस ईच्छानुसार कोई भी रूप धारण करने में सक्षम हैं। इन्हीं हंसों में दो हंस राजरतन और प्रेमरतन को हंसलोक के महाराज द्वारा आवश्यक कार्य दिया जाता हैं। राजरतन और प्रेमरतन दोनों अच्छे मित्र हैं जो कई दानवों को हराने के लिए देवताओं की सहायता करते हैं।

अपने महाराज की आज्ञा का पालन करके राजरतन और प्रेमरतन पृथ्वी आदी ग्रहों पर जाकर कई प्रकार के जीवों की जानकारी और उनके अंश हंसलोक में मणीरत्नमपूर के पास छोड जाते हैं और वहाँ से सीधे तारों की परिक्रमा करते हुए प्रकाश पुंज को आवरण में रखकर महाराज के सैनिकों के पास जमा करवा देते हैं। इस प्रकार दोनों मित्रों का जीवन व्यतीत होता रहता हैं।

प्रेमरतन को राजरतन के बारें में आवश्यक जानकारी प्राप्त होती हैं। राजरतन लाए जाने वाले प्रकाश पुंजों की ऊर्जा को अपने अंदर सोककर शक्तीशाली बनने पर ध्यान देता हैं और इसका वह लालच अधिक बढने अपने मित्र की बात को टाल देता हैं। आखिर में कोई उपाय ना पाकर राजरतन के साथ हंसलोक में लडता हैं, राजरतन की शक्तीयाँ बढ जाने से प्रेमरतन कमजोर होकर गिर जाता हैं। सहीं समय देखकर राजरतन एक नीलविवर का निर्माण करता हैं। वह नीलविवर प्रेमरतन के सभी हमलों को अपने अंदर समाते हुए प्रेमरतन को भी अपने भीतर समाहित कर देता हैं। पूर्ण शक्तीयों का उपयोग करने पर भी प्रेमरतन उस नीलविवर से बाहर नहीं आ पाता।

नीलविवर में कैद प्रेमरतन उसी क्षण राजरतन को पृथ्वीपर 100 बार मानव जन्म लेने का श्राप देता हैं इसके कुछ दिन बाद राजरतन एक गरीब परिवार के यहाँ सुमित्रा नाम की लडकी के रूप में जन्म लेता हैं। सुमित्रा के गांव का नाम धामापुर हैं, यहाँ के एक तालाब में भारी संख्या में हंस होने से तालाब का नाम हंसतालाब पड जाता हैं। जो प्रेमरतन नीलविवर में फँस चुका था वह कैसे भी आजाद होकर हंसतालाब में रहने आ जाता हैं। प्रेमरतन को भी पता चलता की सुमित्रा हीं राजरतन हैं।

सुमित्रा और उसका परिवार गरीब होने के बाद भी कई लोगों को लाचार बनाकर उनके पैसे हडप लेते हैं मगर किसी को इस बात की भनक नहीं होती दूसरी ओर लोगों का मजाक उडाया करती हैं। एक दिन उनके पैसे भी समाप्त हो जाने से लाचार हो जाते हैं। कई वर्ष बित जाने के उस परिवार में केवल सुमित्रा और उसकी बेटी शनया हीं बची रहती हैं। दोनो मिलकर हंसतालाब के पास हंसों को देखते हुए कमल आदी फुलों को जमा करके बाजार में बेचकर पैसे कमाती हैं।

बहुत मेहनत करने के बाद भी सुमित्रा के घर में गरीबी बनी रहती हैं। सुमित्रा और शनया हर रोज कमल फुलों के बहाने सुवर्ण हंस को देखने आया करती हैं ताकी किसी तरह उसे पकडकर पैसे कमाए जा सके। हंस का रंग सोनेरी और मानव जितना आकार साथ हीं उस हंस को तीसरी आँख भी होती हैं। विशाल आकार वाला वह प्रेमरतन सामान्य आकार में रहकर सुमित्रा और उसकी बेटी की गरीबी देखा करता हैं और मदद करने का विचार अपने मन में लाता हैं।

एक दिन हंस सोचता हैं, " इस बुढी महिला की गरीबी नहीं मिट पा रहीं हैं, मैं उसे अपना सुवर्ण पंख देकर बेचने के लिए कहूँगा ताकी गरीबी कम होकर जीवन जीने के लिए पर्याप्त पैसा बचा रहे। किंतु मुझे एक मानव के समान बोलता हुआ देखकर राक्षस ना समझ बैठे " इस बात से थोडा विचलित हो जाता हैं।
बुढी महिला और उसकी बेटी ने पहले हीं सुवर्ण हंस को मानव के समान बोलते हुए देखा फिर भी वह ऐसा बर्ताव करने लगती हैं जैसे उसे जानकर भय लगा हैरान हो गई और कहती हैं, " हंस महाराज आप कल आ सकते हैं ? अवश्य आ जाए "
महिला के कहने पर प्रेमरतन हंस अपने स्थानपर चला जाता हैं और फिर उस घटना के बारें विचार करने लगता हैं पर उसे कुछ गडबड नजर नहीं आती।

अगले दिन सुमित्रा शनया तालाब के पास आकर हंस की प्रतिक्षा करने लगी वहीं हंस अन्य हंस के समान सामान्य रूप बनाकर दोनों के पास आ जाता हैं।
हंस को देखकर सुमित्रा खुश हो जाती हैं पर हंस के लिए खाना लाना भुल जाती हैं।
सुमित्रा कहती हैं, " हंस महाराज मैं आपके लिए खाना लाना भुल गई मुझे क्षमा कर दे "
हंस कहता हैं, " कोई बात नहीं, लेकीन तुम्हें देने के लिए मेरे पास कुछ हैं जिसे बाजार में बेचकर बहुत सारा धन कमा सकती हैं फिर आपको गरीबी से आजादी मिल जाएगी "
ऐसा कहने के बाद हंस अपना एक पंख निकालकर सुमित्रा को देता हैं तबतक उसकी बेटी शनया हंस के लिए खाना लेकर आ जाती हैं। खाना खाने के बाद हंस को बहुत अच्छा लगता हैं फिर वह तालाब के द्वारा पारदर्शी झील में जाकर गायब हो जाता हैं।

उसी दिन सुमित्रा और उसकी बेटी सोनेरी पंख को बजार में बेचने चली जाती हैं जिस कारण धान्य खरीद सके इतना पर्याप्त धन प्राप्त हो जाता हैं। घर में अधिक धन आता देख शनया भी खुश हो जाती हैं जिसे चिडिया के साथ खेलना पसंद हैं और बारिश के समय उन्हें घर में रखकर अच्छी तरह से देखभाल करती हैं। हर दिन हंस सुमित्रा को पंख देकर चला जाता दूसरी ओर माँ बेटी अमीर होती रहती हैं जो उनके पडोसीयों को अधिक हैरान कर देता हैं।

समय बितने के साथ सोनेरी पंख और पैसों का लालच सुमित्रा के मन में घर बनाना शुरु कर देता हैं जिससे वह एकसाथ सभी पंख पाने में उतावली हो जाती हैं। इसके बाद सुमित्रा अपनी बेटी के पास जाकर कहती हैं, " भला एक सोनेरी पंख से क्या होगा ? मुझे तो और चाहिए। कल मैं उस हंस के सारे पंख उखाडना चाहती हूँ इसमें मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, अगर हम सफल हो गए तो एकबार में हीं अमीर हो जाएँगे "
तब शनया कहती हैं, " मैं इस दुष्ट कार्य में आपका साथ नहीं दूँगी यह गलत बात हैं " ऐसा कहने के बाद शनया दुखी होकर तालाब के पास चली जाती हैं।

अगले दिन प्रेमरतन हंस पारदर्शी झील से तालाब में आकर सुमित्रा ले पास आ जाता हैं और शनया के द्वारा दिया गया खाना खाकर खुश हो जाता हैं। दूसरी ओर सुमित्रा उस हंस को अपनी बातों में उलझाए रखती हैं तब हंस अपने दो पंख निकालकर सुमित्रा के हाथों में रख देता हैं और जाने लगता हैं इस बिच सुमित्रा पूरी शक्ती लगाकर हंस के पंख पकडकर रोक देती हैं। शनया अपनी माँ को ऐसा ना करने की सलाह देकर रोकने का प्रयास करती हैं। सुमित्रा लालच में आकर तुरंत हीं पंख उखाडने लगती हैं फिर सुवर्ण हंस एकदम से सफेद हो जाता हैं और दिए गए दो पंख भी जिसे देखने पर सुमित्रा घबराकर हंस को छोड देती हैं।

प्रेमरतन हंस कुछ दूर खडा रहकर सुमित्रा को कहता हैं, " नादान सुमित्रा तुम एक लालची इंसान हो, तुम्हारे कारण मैं सफेद हो गया अब पुन्हा सुवर्ण होने के सुर्य ऊर्जा को सोकना होगा। तुमने मेरी ईच्छा के विरुद्ध पंख उखाडने का प्रयास किया जिसके चलते मेरे पंख सफेद हो गए, अब जीवन भर रोती रहना मैं जा रहूँ "
ऐसा कहने के बाद हंस तालाब के दूसरी ओर जाकर सुमित्रा को देखने लगता हैं।

सुमित्रा को देखते समय राजरतन में मौजुद लालच ऊर्जा का आभास हो जाता हैं फिर हंस समझ जाता हैं की यह बुढी महिला सुमित्रा कोई और न होकर लालची राजरतन हैं। सुमित्रा का सत्य जानने के बाद प्रेमरतन हंस झील से गायब होकर दूसरे सुरक्षित स्थान पर हमेशा के लिए चला जाता हैं।
दूसरी ओर घर गई रोती हुई सुमित्रा को अपने घर में भारी संख्या में कई सारे सुवर्ण पंख पडे हुए मिल जाते हैं। ऐसा होने के बाद तो उसके लालच को पंख लग जाते हैं। शनया उन नए पंखों के बारें में सोचने हीं लगी की तभी सुमित्रा कुछ पल के लिए हंस में बदल जाती हैं मगर यह बात सुमित्रा को याद नहीं आती पर यह देखने के बाद शनया सुमित्रा माँ को कुछ नहीं बताती और शांत रहती हैं।

सुवर्ण हंस की हिंदी कहानी भाग 1 - Moral Story
Moral of Golden Bird hindi story

सीख - " अधिक लालच से हानी होती हैं और इस बात का भयानक परिणाम भी भुगतना पडता हैं "

हमारी आज की कहानी " सुवर्ण हंस की हिंदी कहानी - Golden Bird Moral Story in Hindi " समाप्त हो जाती हैं। अगर आपको यह Moral story in hindi पसंद आए तो हमारे Blog cosmickingmultiverse को अवश्य भेट दे जहाँ आपको Moral story, fantasy story, horror story, ghost story in hindi, adventure stories in hindi के साथ fiction story in हिंदी पढने के लिए मिल जाएगी।




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